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ओंकारेश्वर अभयारण्य वन्य-जीव संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने में निभाएगा महत्वपूर्ण भूमिका : मुख्यमंत्री डॉ. यादव

भोपाल। मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदेशवासियों को एक ऐतिहासिक सौगात मिली है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ‘अभ्युदय मध्यप्रदेश’ कार्यक्रम के दौरान ओंकारेश्वर अभयारण्य की घोषणा की। यह अभयारण्य राज्य का 27वां अभयारण्य होगा, जो खंडवा और देवास जिलों को मिलाकर बनाया जाएगा। इसका कुल क्षेत्रफल 611.753 वर्ग किलोमीटर होगा, जिसमें खण्डवा जिले का 343.274 वर्ग किलोमीटर एवं देवास जिले का 268.479 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र शामिल होगा। डूब क्षेत्र को अभयारण्य से बाहर रखा गया है, जिससे स्थानीय मछुआरों और ग्रामीणों की आजीविका प्रभावित न हो।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि ओंकारेश्वर अभयारण्य में बाघों की भी उपस्थिति रहेगी। इस क्षेत्र में पहले से ही तेंदुए, भालू, सांभर, हाइना, चीतल और कई प्रकार के जीव मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य प्रदेश की प्राकृतिक संपदा को संरक्षित करना और पर्यावरण संरक्षण के साथ स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है।

असम से आएंगे जंगली भैंसे और गैंडे

ओंकारेश्वर अभयारण्य में असम से जंगली भैंसे और गैंडे लाने की योजना पर भी काम चल रहा है। मध्यप्रदेश जैव-विविधता के क्षेत्र में अग्रणी है। प्रदेश में “चीतों का सफल पुनर्स्थापन हो चुका है, अब नौरादेही अभयारण्य में नामीबिया से आए चीते छोड़े जाएंगे”।

ओंकारेश्वर अभयारण्य का स्वरूप

वन विभाग की कार्ययोजना के अनुसार सामान्य वनमंडल खंडवा के अंतर्गत पुनासा, मूंदी, चांदगढ़, बलडी परिक्षेत्र तथा देवास वनमंडल के सतवास, कांटाफोड़, पुंजापुरा और उदयनगर परिक्षेत्र शामिल होंगे। इसमें कोई भी राजस्व ग्राम एवं वनग्राम शामिल नहीं है।

अभयारण्य में 52 टापू

अभयारण्य में 52 छोटे-बड़े टापू हैं। मूंदी रेंज में 31 और चांदगढ़ रेंज में 21 टापू शामिल होंगे। बोरियामाल और जलचौकी धारीकोटला को ईको-टूरिज्म केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा।

वन्यजीव और वनस्पति

यहां की प्रमुख वनस्पतियों में सागौन, सालई और धावड़ा शामिल हैं। मुख्य मांसाहारी जीवों में बाघ, तेंदुआ, रीछ, सियार और लकड़बग्घा हैं। शाकाहारी जीवों में मोर, चीतल, सांभर, चिंकारा, भेड़की, सेही, खरगोश और बंदर मौजूद हैं।

ईको-पर्यटन से बढ़ेगा रोजगार, समृद्ध होंगे ग्रामीण क्षेत्र

ओंकारेश्वर अभयारण्य में पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन और ग्रामीण विकास को भी प्राथमिकता दी गई है। यहां होटल और रिसोर्ट की स्थापना, पशुधन एवं कुक्कुट फार्मों का विकास, लघु वनोपज का संग्रहण, सड़कों का चौड़ीकरण, पहाड़ी ढालों और नदी तटों का संरक्षण, रात्रिकालीन यातायात प्रबंधन और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी गतिविधियां की जाएंगी। अभयारण्य में पारिस्थितिक पर्यटन (ईको-टूरिज्म) को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त होगा। इन पहलों से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार होगा। पर्यटकों के आगमन से स्थानीय लोगों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ेगा, जिससे पारंपरिक जीवनशैली, खानपान और धार्मिक मान्यताओं के प्रसार के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विस्तार होगा। ओंकारेश्वर क्षेत्र अब न केवल जैव विविधता का केंद्र बनेगा, बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ग्रामीण पर्यटन का भी नया मॉडल प्रस्तुत करेगा।

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