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अम्बेडकर अस्पताल के वैज्ञानिकों ने विकसित की कोविड-19 की गंभीरता का प्रारंभिक अनुमान लगाने वाली बायोमार्कर किट

रायपुर:  पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर), भारत सरकार, और छत्तीसगढ़ सरकार के सहयोग से स्थापित मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) ने स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति की है। इस यूनिट के वैज्ञानिकों ने एक अभिनव बायोमार्कर किट विकसित की है, जो कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता का प्रारंभिक चरण में ही सटीकता से पूर्वानुमान लगा सकती है। यह अनुसंधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मेक इन इंडिया” अभियान के तहत देश में स्वास्थ्य अनुसंधान अधोसंरचना को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने वाला रिसर्चडॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर में स्थित इस यूनिट ने देश के सीमित संसाधनों का उपयोग करके जो सफलता हासिल की है, वह अपने आप में प्रेरणादायक है। इस अनुसंधान के परिणाम हाल ही में प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन समूह की विज्ञान पत्रिका “साइंटिफिक रिपोर्ट्स” में प्रकाशित हुए हैं, जो दुनिया के सबसे अधिक संदर्भित किए जाने वाले रिसर्च जर्नल्स में से एक है।

महामारी के शुरुआती दिनों में, जब वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय कोविड-19 के निदान के लिए नई तकनीकों के विकास में जुटा हुआ था, उस समय एमआरयू के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जगन्नाथ पाल ने इस दिशा में काम करना शुरू किया। हार्वर्ड कैंसर संस्थान (बोस्टन, यूएसए) से पोस्टडॉक की उपाधि प्राप्त डॉ. पाल ने उस समय कोविड-19 प्रबंधन में एक बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे भविष्य की किसी भी महामारी में यह किट अत्यंत उपयोगी साबित हो सकेगी।

डॉ. पाल और उनकी टीम ने तीन साल के निरंतर और अथक प्रयासों से इस बायोमार्कर किट को विकसित किया। इस किट के माध्यम से अब प्रारंभिक चरण में ही कोविड-19 के रोगियों में संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है, जिससे संसाधनों का सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। इस किट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह क्यू पीसीआर (Quantitative PCR) आधारित है और इसमें विकसित “सीवियरिटी स्कोर” की संवेदनशीलता 91 प्रतिशत और विशिष्टता 94 प्रतिशत है।

इस परियोजना में डॉ. योगिता राजपूत सहित एमआरयू की टीम के अन्य वैज्ञानिकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न विभागों और विशेषज्ञों के साथ समन्वय करके इस चुनौतीपूर्ण परियोजना को साकार किया।

इस महत्वपूर्ण अनुसंधान के व्यावसायिक मूल्य को देखते हुए पं. जे.एन.एम. मेडिकल कॉलेज ने इस किट के लिए भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए आवेदन किया है। हाल ही में अमेरिका की एक पेटेंट सर्च एजेंसी से प्राप्त रिपोर्ट ने इस आविष्कार के संभावित व्यावसायिक महत्व को रेखांकित किया है, जिससे भारतीय स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी को वैश्विक बाजार में निर्यात करने का एक बड़ा अवसर मिल सकता है।

यह उपलब्धि केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह इस धारणा को भी चुनौती देती है कि ऐसे उच्च-स्तरीय तकनीकी आविष्कारों के लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों और धन की आवश्यकता होती है। एमआरयू की यह सफलता उन शोधकर्ताओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद उच्च गुणवत्ता वाली अनुसंधान परियोजनाओं को मूर्त रूप देने का सपना देखते हैं।

पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की यह उपलब्धि एक प्रमाण है कि राज्य संचालित मेडिकल कॉलेज भी विश्वस्तरीय स्वास्थ्य तकनीकों के विकास में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। इसके साथ ही, यह मेक इन इंडिया अभियान को समर्थन देते हुए, भारतीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण योगदान भी देगा।

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